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शनिवार, 16 जून 2012

अतीत 

कालिन्दी के पुलिन पर,
विश्रम्भ जमे आंशुओं का, 
शरद कौमिदी में,
हँसता,
कभी सिसकता,
संगमरमरी ताजमहल !
कब ढहेगा,
वर्तमान,
कब अतीत बनेगा,
क्योंकि,
इतिहासकारों की स्मृति को,
कहानीकारों को,
और,
मुझे भी,
अतीत ही प्रिय है।             

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