अतीत
कालिन्दी के पुलिन पर,
विश्रम्भ जमे आंशुओं का,
शरद कौमिदी में,
हँसता,
कभी सिसकता,
संगमरमरी ताजमहल !
कब ढहेगा,
वर्तमान,
कब अतीत बनेगा,
क्योंकि,
इतिहासकारों की स्मृति को,
कहानीकारों को,
और,
मुझे भी,
अतीत ही प्रिय है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें