मानव ! आसव के दो कश लेकर ही, आदी बन जाता है। परन्तु, बार बार मरकर भी, क्यों, मृत्यु से घबराता है।
अनकही बातें
कभी सपनों की बातें भी,
अनकही सी रह जाती है ...........!
और कभी युगों की वेदना,
उफनती,
पतझर सी झर जाती है।
किसलय सी अनुभूति,
सप्त-स्वरी वीणा पर,
इन्द्रधनुष सी थिरकती है।
फिर कभी,
जीवन जग मंच पर,
कुशल अभिनेत्री सी,
द्रोपदी आशाएं,
चीरहरण करवाती हैं।
अनबूझी, अनसमझी पहेली सी बातें भी,
अनुभूति क्रम में ................
............अनकही सी रह जाती है।
शनिवार, 16 जून 2012
अतीत
कालिन्दी के पुलिन पर,
विश्रम्भ जमे आंशुओं का,
शरद कौमिदी में,
हँसता,
कभी सिसकता,
संगमरमरी ताजमहल !
कब ढहेगा,
वर्तमान,
कब अतीत बनेगा,
क्योंकि,
इतिहासकारों की स्मृति को,
कहानीकारों को,
और,
मुझे भी,
अतीत ही प्रिय है।
वफादार आंसू
दुर्दिन जीवन पल भर में,
मधुवन में,
सुख में,
दुःख में,
मधुर मिलन में,
विछोह में,
आदि से अंत,
मेरे साथी,
सच्चे मित्र बंधू ,
जीवन संध्या में,
अस्ताचल में,
चुका नहीं सकता तेरा,
जीवन भर का ऋण,
फिर पास नहीं कुछ मेरे,
तब,
आंसू ही लुढका कर,
गालों में,
चुकाता हूँ तेरा ऋण,
स्वीकार करना।
गुरुवार, 14 जून 2012
शाम
तनिक देर और पास पास रहे ।
चुप रहे, उदास रहे ।।
जाने फिर कैसे हो जाये यह शाम ।
एक एक कर पीले पत्तों का ।।
टूटते चले जाना इतने चुपचाप ।
और तुम्हारा पलकें झपकाकर ।।
प्रश्नों को लौटा लेना अपने आप ।
दूर दूर सड़क किनारे ।।
सूखे पत्तों के धुंधवाते ढेर ।
एक तरफ बेठे हैं गुमसुम से ।।
दो पीले पीठ फेरे फेरे ।
डूब रहा सभी कुछ अंधरे में ।।
चुप्पी के घेरे में ।
पेडों पर चिड़ियों ने डाला कोहराम ।।
तनिक देर और पास पास रहे ।
चुप रहे, उदास रहे ।।
बुधवार, 13 जून 2012
सुख और दुःख
जीवन के उजड़े मधुवन में,
ह्रदय पुष्प खिल जाने दो।
विरह स्मृति नयनो को,
अब सावन भादो बन जाने दो।
जीवन संध्या गगन में,
मुस्कान अरुण फैलने दो।
क्षण भर के जीवन जग में,
जीवन पराग बह जाने दो।